महफ़िल में हम बड़े बेजार बैठे हैं
लोग कहते हैं मैं दिल से काम लेता हूँ
तो क्या करूँ,हर तरफ होशियार बैठे हैं
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वादा तो था मोहब्बत में जान देने का
पर ना जाने क्यों हम लाचार बैठे हैं
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झूठ है अश्क की कीमत नहीं होती
देखो,खरीदने को कितने खरीदार बैठे हैं
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मुश्किल है उन तक पैगाम पहुचना
डाकिये भी कितने मक्कार बैठे हैं
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ख्वाबों में भी आना बंद है आज कल
क्योंकि नींद पे भी पहरेदार बैठे हैं
महफ़िल में हम बड़े बेजार बैठे हैं
मोहब्बत में अपना सब हार बैठे हैं