Sunday, January 31, 2010
पैमाना
दोस्तों.........आज हर कोई अपने को बढ़ाने में कम दुसरे को घटाने में ज्यादा मेहनत करता है ...ये कैसे आगे बढ़ गया ,ये क्यूँ तरक्की कर रहा है ,इसको कैसे नीचा दिखाऊ .....ये तरह के वायरस दिमागी क्यम्प्यूटर में आकर आदमी को हैंग कर देते हैं .......और प्रगति रुपी माउस निष्क्रीय कर देता है .....मेरी कम उम्र श्यादकुछ मेरे आदरणीय विष्शिठ लोगों के लिए सफलता पाने का पैमाना हो सकती है ..........जिनके भाव भंगिमा को मै आज तक नही पढ़ पाया....की वो मेरे लिए किस तरह के हैं ..........उनके भाव मेरे लिए भले बदल गये हो पर मेरे भाव बढ़ने के बाद भी उनके लिए आज भी मेरे मन में बिना आभाव के वही भाव हैं।
Saturday, January 30, 2010
आप और मै
दोस्तों ........मुझे कभी कभी लगता है मै इस समाज के व्यसायिक करण को पूरी तरह नही अपना सकता ....मै इस भीड़ में आ तो गया हूँ पर जिसे देखो वो धक्का मार कर चला जाता है ......मुझे इस रास्ते पर सीधा चलने के लिए अपने अन्दर बहुत कुछ तोडना होगा ........क्योंकि यहाँ बिना रीड़ की हड्डी का इंसान चाहिए .....क्या मेरी कहीं जरूरत नही ?....मुझे भी झूठ,मक्कारी,फरेब,धोखा और चापलूसी सीखना होगा ...अगर नही, तो ज्यादा दिनों तक नही दौड़ पाउँगा ...
Thursday, January 28, 2010
pauaa
एक दिन सब्जी मंडी पहुचकर मैंने टमाटर वाले से पुछा टमाटर का भाव
वो बोला ८ रुपये किलो ५ का अधाकिलो ३ रुपये पाव
मैंने कहा मुझको बेवक़ूफ़ बना रहा है
टमाटर एक है भाव तीन बता रहा है
वो बोला साहब बेवक़ूफ़ नहीं बना रहा हूँ
इस वज़न की दुनिया में अपना घर चला रहा हूँ
क्यूंकि जिसके पास जितना ज्यादा है
पउवा है किलो है आधा है
उसका उतना फायदा है
समाज में जीने का यही कायदा है
मैं टमाटर वाले की बात सुनकर सोच में पड़ गया
कि आज समाज कि मंडी में भ्रष्टाचार का भाव कितना आगे बढ़ गया
कोई माने या ना माने पर ये सच है मेरे दोस्तों
कि इस वज़न के चक्कर में हम अपनी बात का वज़न खो रहे हैं
भारत कि संस्कृति में एक नयी परंपरा पिरो रहे हैं...!!!
वो बोला ८ रुपये किलो ५ का अधाकिलो ३ रुपये पाव
मैंने कहा मुझको बेवक़ूफ़ बना रहा है
टमाटर एक है भाव तीन बता रहा है
वो बोला साहब बेवक़ूफ़ नहीं बना रहा हूँ
इस वज़न की दुनिया में अपना घर चला रहा हूँ
क्यूंकि जिसके पास जितना ज्यादा है
पउवा है किलो है आधा है
उसका उतना फायदा है
समाज में जीने का यही कायदा है
मैं टमाटर वाले की बात सुनकर सोच में पड़ गया
कि आज समाज कि मंडी में भ्रष्टाचार का भाव कितना आगे बढ़ गया
कोई माने या ना माने पर ये सच है मेरे दोस्तों
कि इस वज़न के चक्कर में हम अपनी बात का वज़न खो रहे हैं
भारत कि संस्कृति में एक नयी परंपरा पिरो रहे हैं...!!!
Sunday, January 24, 2010
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