दोस्तों ........मुझे कभी कभी लगता है मै इस समाज के व्यसायिक करण को पूरी तरह नही अपना सकता ....मै इस भीड़ में आ तो गया हूँ पर जिसे देखो वो धक्का मार कर चला जाता है ......मुझे इस रास्ते पर सीधा चलने के लिए अपने अन्दर बहुत कुछ तोडना होगा ........क्योंकि यहाँ बिना रीड़ की हड्डी का इंसान चाहिए .....क्या मेरी कहीं जरूरत नही ?....मुझे भी झूठ,मक्कारी,फरेब,धोखा और चापलूसी सीखना होगा ...अगर नही, तो ज्यादा दिनों तक नही दौड़ पाउँगा ...
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