एक दिन सब्जी मंडी पहुचकर मैंने टमाटर वाले से पुछा टमाटर का भाव
वो बोला ८ रुपये किलो ५ का अधाकिलो ३ रुपये पाव
मैंने कहा मुझको बेवक़ूफ़ बना रहा है
टमाटर एक है भाव तीन बता रहा है
वो बोला साहब बेवक़ूफ़ नहीं बना रहा हूँ
इस वज़न की दुनिया में अपना घर चला रहा हूँ
क्यूंकि जिसके पास जितना ज्यादा है
पउवा है किलो है आधा है
उसका उतना फायदा है
समाज में जीने का यही कायदा है
मैं टमाटर वाले की बात सुनकर सोच में पड़ गया
कि आज समाज कि मंडी में भ्रष्टाचार का भाव कितना आगे बढ़ गया
कोई माने या ना माने पर ये सच है मेरे दोस्तों
कि इस वज़न के चक्कर में हम अपनी बात का वज़न खो रहे हैं
भारत कि संस्कृति में एक नयी परंपरा पिरो रहे हैं...!!!
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