Monday, January 13, 2014

खिचड़ी

हमारे भले नेता ,भले पांच साल दिखे पर किसी भी त्योहारों में ये ऐसे नज़र आते हैं जैसे की त्योहारी मांगने आये हैं, मकर संक्रांति पर खिचड़ी वितरण का कार्यक्रम जोरो से होता है। मैंने  भी खाई और फिर ये खिचड़ी तैयार हुई आपके लिये…। 

मैंने कहा नेता जी खिचड़ी तो भायी है 
खिचड़ी  मगर    ये कैसे     बनायी है 
नेता बोले खिचड़ी ये राजनीती वाली है 
इसमें   देखो    क्या चीज़ भी  डाली है 
आग    गरीबी   की     मैंने लगायी है 
उस पे वादों    वाली  हांडी     चढ़ाई है
शहर के सुन्दरीय करण वाला चावल है 
मटर के दाने जैसा गंगा जी का पूल है 
सड़कों और नालियों का इसमें नमक भी है 
नौकरी     रोज़गार    वाला  देशी घी है 
भूखी इस जनता की आँखों का पानी है 
खिचड़ी बनाने की बस ये कहानी है 
बनी हुई खिचड़ी मई लोगों को खिलाऊंगा 
भारी मतों से  फिर     संसद जाउंगा  
मैंने कहा नेता जी संसद जायेंगे 
वहाँ पर खिचड़ी वाली सरकार चलाएंगे 
पूरी     मलाई      अकेले    खायेंगे 
हम को कब तक खिचड़ी खिलाएंगे 
हम को कब तक खिचड़ी खिलाएंगे 

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