Wednesday, May 7, 2014

luck without life

विश्वास  … 
             हाँ विश्वास ही तो करने लगा हूँ 
               बहुत ज्यादा 
              शायद खुद से भी ज्यादा 
      कहते हैं प्यार का दूसरा नाम होता है विश्वास 
              तो क्या मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ 
            मेरा अहम ,गुरुर ,खुद्दारी सब के सब तुम्हारे सज़दे में सिर झुका रहे हैं 
           मेरी तमाम परेशानी ,तकलीफ ,उलझने ,सब तुम्हारे नाम से सुकून पा रहे हैं 
             मुझे आज भी याद है  … जब मैं तुम्हारे नाम से चिढ़ता था 
             मुझमे और तुम में अगर कुछ था तो वो था ३६ का आँकड़ा 
                तुम अपने गुरुर में थी 
                मैं अपने गुरुर में 
              तुम पर लोग बड़ी आसानी से विश्वास करते थे 
             पर मुझे खुद से ज्यादा किसी पर भी नहीं 
               पप्पू ,गोलू,जावेद ,हनी मेरे दोस्त 
            सब तुम्हे पाने का ख्वाब देखा करते थे 
        और गली का हर शख्स तुम्हारे लिए आहें भरा करता था 
        तुम किसके साथ रहती थी 
          किसके साथ जाती थी 
          किससे मिलती थी 
        मुझे इस बात की कभी परवाह नही थी 
       पर आज जब तुम्हे किसी के साथ देखता हूँ 
       तो टूट जाता है मन 
        जल जाता है तन 
          रात बेचैनी से कटती है और दिन उलझन भरा 
             अब मैं बस तुम्हे  पा लेना चाहता हूँ 
              अपनी आगोश में समां लेना चाहता हूँ 
           मिटा देना चाहता हूँ  .... अपने बीच की ये दूरी 
              ये लाचारी और मजबूरी 
             हाँ ,हाँ,हाँ मैं करने लगा हूँ तुम पर बेपन्हा विश्वास 
           पर तुम कब आओगी मेरी जिंदगी में 
           और चमकोगी उस तरह ,जिसे लोग कहते हैं किस्मत 
           जी हाँ  … मैं किस्मत की ही बात कर रहा था 
जिसके अस्तित्व को मैं   अब मानने लगा हूँ 
       क्योंकि            luck without life 
         just like husband without wife  

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